Monday, September 15, 2014

सुनो हिंदी

एबीपी न्यूज में हिंदी दिवस पर एक कविता प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। ये चैनल के कर्मचारियों के बीच आंतरिक प्रतियोगिता थी। मैंने भी जीवन में पहली बार औपचारिक तौर पर कविता लिखने की कोशिश की। इस बात की खुशी है कि इसे पुरस्कृत भी किया गया। नीचे पढ़े मेरी कविता-


कौशल लखोटिया

एबीपी न्यूज के संपादक
शाज़ी ज़मां के साथ

सुनो हिंदी

हिंदी तुम एक बात सुनो,
जिद्दियों से दूर चलो ,
खुद डूबे हैं तुम्हें भी डुबाएंगे,
सुंदरता में दाग लगाएंगे।

तुम नदी हो कोई ताल नहीं,
किसी के बाप का माल नहीं।
आजाद हो आजाद रहो
खुल के अपनी बात कहो।

उर्दू हो या फारसी,
या भाषा बनारसी,
तुम सबकी यार हो,
सबसे दो-चार हो.

तुम तो इतनी जिद्दी न थी,
किसकी संगत में बिगड़ी हो,
सी-सैट वालों के चक्कर में,
गलत बात पर अड़ी हो।

 तुमने सबका सम्मान किया,
जरूरत से ज्यादा मान दिया,
तुम्हारा कोई क्या उखाड़ेगा,
अपना ही भाग्य बिगाड़ेगा.

अंग्रेजों से गुस्सा हैं हम,
पर अंग्रेजी का क्या दोष है?
नाच न जाने आंगन टेढ़ा,
क्या इसी बात का रोष है,

सेंसस वाले कहते हैं,
पचपन करोड़ तुम्हारे हैं,
फिर बारह करोड़ से,
क्यों डरते सारे हैं?

मैं लवर नहीं अंग्रेजी का,
लेकिन उससे जलता हूं,
उसकी दिलदारी देख,
ठंडी आहें भरता हूं,

बदमाश और गुरू को
वो तो अपना मानने लगे,
नॉटी और गॉडफादर से
तुम क्यों दूर भागने लगे।

संस्कृत का क्या हाल हुआ,
इससे तुम अनजान नहीं,
जिद्दियों के बहकावे में,
करता है नुकसान कोई?

हिंदी, तुममे बात तो है
अनकहा अंदाज तो है,
बस जिद्दियों से रहना दूर,
यस सर, जी हजूर।

अब चिंता की बात नहीं
पीएम हिंदी वाले हैं,
अंग्रेजी तुम दूर हटो,
अच्छे दिन आने वाले हैं.